रात को सोने से पहले दवा की एक गोली खाली पेट खा लेना। ज्यादा दर्द हुआ तो दोबारा आके मिलना। और हां शराब पीना थोड़ा बंद कर दो मुरारी लाल। अब जाओ चिंता मत करो ठीक हो जाओगे। वाकई में ये काम थका देने वाला है। दो पल के लिए आँखे बंद किया था कि तभी अचानक एक आवाज आयी
एक डॉक्टर का काम बहुत मुश्किल का काम होता है ना बेटा? ये कहते हुए एक अधेड़ उम्र का आदमी हाथ में एक किताब लेके मेरे सामने बैठा था। क्यों डॉक्टर साहब सही कहना मैने।
क्या तकलीफ है आपको ? मैने धीरे से पूछा उसे। पर उस आदमी ने जो कहा वो वाकई में हैरान कर देने वाला था। उसने मुझे कहा :- तकलीफ तो है पर क्या मुझे मेरे रूह का सौदा करना होगा इस तकलीफ से निजात पाने के लिए। जवाब मेरे पास था नहीं और सच कहूं तो उस आदमी को भी जवाब सुनने की कोई जल्दी नहीं था। में कुछ बोलूं इससे पहले ही वो बोल पड़ा रूह का सौदा करना बेवकूफी नहीं लगता डॉक्टर ? और हस्ते हस्ते निकल गया। तभी अचानक नर्स के जोर जोर से हिलाने से में अपने ख्यालो से से बाहर आया। डॉक्टर अब बाहर कोई मरीज नहीं है।
अजीब था पर मैंने हालत पे काबू करते हुए किसी तरह खुद को समझाया। पर जो सब मेरे साथ हो रहा था उसे नजर अंदाज भी तो नहीं किया जा सकता। मैंने तुरंत अपने सामान उठाए और गाड़ी में बैठ कर निकल गया अरमान से मिलने।
तीन महीने से भी ज्यादा वक़्त बित चुके थे उस वाक़िए को।तबसे लेके अबतक मैने अरमान से दूरी बना ली थी। पर अब मुझे जवाब जानना था। शाम का वक़्त हो चला था। मैने धीमे क़दमों से अरमान के घर में क़दम रखा। वही जान लेबा अँधेरा खमोशी से भरा एक कमरा। बड़े ही धीमे आवाज़ से मेने अरमान को पुकारा , पर अंदर से कोई जवाब नहीं मिला। तभी अचानक मेरे सामने से एक परछाई गुजरी। मुझे लगा सायद अरमान होगा , ये सोचकर में उस परछाई के पीछे गया। उस परछाई का पीछा करते करते में एक अँधेरे कमरे में पहंच गया। कमरा पूरा अँधेरे से भरा पड़ा था। सिर्फ एक परछाई सी दिख रही थी। मे पसीने से पूरा तर बदर हुआ जा रहा था। में उस परछाई के करीब गया तो मुझे बड़ी बेचेनिसि होने लगी। परछाई को छूने की कोशिश कर है रहा था के तभी पिछेसे अरमान ने मुझे खींच लिया।
डॉक्टर ! तुम यहाँ , इस वक़्त ? और इतने दिनों बाद ? सब ठीक तो है ना ? अरमान ने बड़े ही सहेज तरीके से मगर धीरेसे पुछा।
इन सारे सवालों से बड़ा एक और सवाल था, जो मेरे दिल में दस्तक दे रहा था। वो परछाई किसकी थी अरमान?
पहले तो वो थोड़ा चुप खड़ा रहा फिर धीरे से मुझे लेके एक और कमरे में चला गया। डॉक्टर मेने तुमसे कहा था के मेरे घर आनेसे पहले मुझे बता दिया करना। पर नहीं तुम तो सीधे ही आ जाओगे। मेरी बात ध्यान से सुनो, यहाँ तुम्हारे किसी भी सवालों का कोई जवाब नहीं मिल सकता।
पर क्यों नहीं ? मेरी आवाज़ अब थोडासा सख्त हो चला था। मुझे मेरे सवालों के जवाब चाहिए अरमान। तीन महिनो से में तुमसे भाग रहा हूँ पर कभी कोई न कोई वजह सामने आ हि जाता हे जो मुझे यहाँ आने को मजबूर कर देता हे। आखिर तुमने उस मरे हुए लड़के को जिन्दा कैसे किया ?
छोडो डॉक्टर मेरे बातो को तुम मानोगे नहीं तो बता के क्या फ़ायदा ? वैसे भी तुम्हारे लिए यही अच्छा हे के तुम जितना हो सके इन सब से दूर ही रहो। कुछ चीज़े हमारे बस में नहीं होती डक्टर। उन्हें समझने की कोशिस करना बेकार हे। पर अगर तुम वाकई में जानना चाहते हो तो सुनो, ये कहकर अरमान ने मुझे एक अँधेरे कमरे में ले गाया।
डॉक्टर अगर जिन्दा रहना चाहते हो तो जैसा मैं कहूं वैसा ही करना। मैंने डरते हुए अपने सर को हाँ में हिलाया। कमरा इतना अँधेरा था के कुछ भी नहीं दिख रहा था। तभी अरमान दोबारा से बोल उठा आज इस कमरे में जो भी होगा उसकी जिम्मेदारी मेरी नहीं होगी। क्या तुम अभी भी आगे जाना चाहते हो ? एक बार सोच लो ? पर उस वक़्त मुझे सब मंजूर था मेने हामी भरी। अरमान ने मुझे एक धागा देते हुए कहा इसे अपने हात पे बांधलो ।
लेकिन एक बात का ध्यान रखना डॉक्टर कुछ भी हो जाये इस धागे को निकालना मत। जब तक ये धागा तुम्हारे हात में हे तुम सुरखित हो। इतना केहे कर वो मेरे सामने बैठ गया। कुछ देर तक वो कुछ मन्त्र पढता रहा, फिर अचानक कमरे में सारी चीज़े हिलने लगी। अरमान ने मुझे सांत रहने को इशारा किया। पर अरमान को देख के लग रहा था के वो बहोत ही बेचैन हे । फिर वो अचानक से सांत होगया।
डॉक्टर पीछे मत देखना बरना वो तुम्हारे दो टुकड़े करदेगी। इस बार में जान चूका था की अरमान मजाक नहीं कर रहा हे। क्यों के ठीक मेरे कानो के पास किसी के सांसो की गरमाहट को मेहसूस कर पा राहा था में। मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो चली थी। हम कहाँ पे हे अरमान ? मेने बड़े ही धीमी आवाज़ से पुछा। डॉक्टर हम उस जगह पे हे जहाँ पे इंसानी रूह का सौदा होता हे। यहाँ तुम्हे अपने सारे सवालों के जवाब मिल जायेंगे। तुम अब सवाल पूछ सकते हो। मेने हिमत के साथ अपने आप पर काबू करते हुए पुछा :- वो लड़का जिससे में बचा नहीं पाया था वो आखिर कर जिन्दा कैसे हे ? तभी पिछेसे आवाज़ आयी :- हर सावल की एक कीमत होती हे डॉक्टर क्या तुम कीमत चुकाने को तैयार हो ? मैंने पूछा कैसी कीमत ?
फिर से सवाल ?
में समझ गया की अब हमारे बस में कुछ नहीं था ? मेने हामी भरा। तो ठीक हे डॉक्टर हर सवाल के बदले में तुम्हारे दोस्त के जिस्म से मांस का एक टुकड़ा खींच लुंगी। ये सुनतेही मेरे पेरो तले से जमीं खिसक गयी। मेने तुरंत ही अरमान को वापस चलने को कहा पर तब तक बहोत देर हो चूका था। सायद अब वहां से लौटना नामुमकिन था।
कहानी आगे भी जारी रहेगी।
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