बुराई के बदले अच्छाई,कितना सम्भब ?

बुरे के साथ अच्छा और अच्छे के साथ बुरा क्यों होता हे ? 

बुराई के बदले अच्छाई,कितना सम्भब ?



जिंदगी में आपको काईन बार ऐसा लगा होगा के मेरे ही साथ क्यों बुरा हुआ ? हेना जबकि असल में इस दुनिया में किसीके साथ बुरा नेही होता। परिस्तिथि हमे परखते हे। हमने खुस रहने का अपना ही एक अलग परिभासा बना लिया हे। इंसान ही एक ऐसा प्राणी हे जो अपने से किसी और को श्रेष्ठ नहीं मानता। हलाकि इस संसार में जनमे हर प्राणी अपने आप में ही श्रेष्ठ होते हैं। आज हम एक अनोखे कहानी के जरिये इस पुरे बकिये को समझ ने की कोशिश करेंगे। inspirational short stories about life

एक गाऊँ में सरत चंद्र नामके एक लेखक रहते थे। किताबे ही उनकी जीबन का आदर्श थे। परिबार में अक्सर इसी किताबी प्रेम के चलते उनको बाद बिबाद का भी सामना करना पड़ता था। फिर भी उनकी किताबों के प्रति कभी प्रेम में अंतर नहीं आया। सरत चंद्र जी के परिबार में उनकी एक बूढी माँ और उनके पत्नी के समेत दो बेटिया भी थी। सरत जी जितना भी लिखते पर अंत में  उनके जरूरत के आगे कम पड़ जाते। पर किताबों उन्हें गाऊँ का एक ज्ञानी ब्यक्ति का दर्जा दिलवाया था। सायद एहि वजह रही होगी के उन्होंने अपने ऊपर उठ रहे हर बाद बिबाद को नजर अंदाज कर जाते थे। स्वभाब में बड़े ही सरल थे सरत जी। पर पैसों की कमी के चलते उन्हें  काईन बार उधार में सामान लाना  पड़ जाता था। अपने सरल और सांत स्वभाब के चलते सरत जी को हर कोई पसंद करता था। पर कभी कभी उन्हें गाऊँ के गवार किराने वाले से अपने उधारी को लेके कुछ कटाक्षय सुनने को मिल जाते। लेखक जी को फुरसत मेले तो साहित्य में आलोचना भी अक्सर किया करते हे। inspirational short stories about life

सरत जी की पत्नी प्रतिभा देबि, उनके बारेमे आपको क्या कहें ? सरत जी की जीबन की प्रेरणा  रही हे वो। हलाकि परिबार में अनबन तो होती ही रहती हे पर ईंटे तकलीफ में भी सरत जी को अकेला नहीं छोड़ी। गाओं के स्कूल में पढ़ा ती थी। और घर का पूरा दारो मदार उनपे ही था। परिबार को परिबार बनाये रखने  ही योग दान रहा हे। परिबार में अनुसासन कैसेबनि रहे प्रतिभा जी इसपे काफी अनुध्यान करते थे। inspirational short stories about life

वहीँ दूसरी तरफ अपने गाऊँ के बड़े ब्यापारी के  तोर पे गोविन्द सेठ काफी मशहूर था। उसके बचे सरत  के साथ पढ़ते थे। काफी पैसे होने के वजेसे गोविन्द सेठ इंसानो की कदर नहीं  करते थे। दुसरो को अपने छल  कर अपने ब्यापार को बढ़ाया था उन्होंने। सायद ही कोई गाओं में होगा जिसक गोविन्द सेठ ने परेशान  हो। अपने परिबार के अलावा उसके लिए कोई भी मायने नहीं  रखता था। उसके बिपरीत अपने अभाब के वाबजुत सरत जी अपने से कमजोर की बहत मदत करते थे। एक दिन सरत के बड़े बेटो को बुखार हुआ। बुखार बढ़ता ही चला गया। पैसों के कमी के चलते प्रतिभा  को अपने गेहेने बेचने पड़े। उनका बेटा ठीक होगया। पर घर की माली हालत बहत ही बिगड़ गयी। वहीँ दूसरी और गोविन्द सेठ अपने कारोबार में ऊपर उठता ही गया। पर सरत जी  अभी भी दूसरों की मदत करते रहते थे। उनसे  पड़ता वो करते। एक दिन सरत जी के घर गोविन्द सेठ आए। उनकी नजर सरत जी के छोटीसी जमीं पर थी। पर इतने आर्थिक तंगी के वाबजुत सरत जी ने जमीन का सौदा करने से मना करदिया। और ये बात गोविन्द सेठ को खल गयी। एक रात उसने सरत जी के फसल में आग लगा दिया। सारा फसल गया।  वो फसल उनके आम  दानी का एक अहम् स्रोत था। ये बात सुन के सरत जी के  मा को इतना सदमा लगा के वो  चल बसी। परिबार की माली हालत और निचे गिर गयी। inspirational short stories about life

सब जानते थे ये काम किसने किया हे। पर किसीने भी गोविन्द सेठ के खिलाप सरत जी का साथ नहीं दिया। अंत में सरत जी ने अकेले ही उसके खिलाफ मोर्चा निकला। पर उससे भी कुछ हासिल नहीं हुआ। परिबार के प्रति वो  जिम्मेदारी निभा नहीं सके। आखिर कार प्रतिभा उन्हें छोड़के चली गयी। उस हादसे को अब  दस  साल बीत चुके हे। जीबन ने उन्हें कभी कुछ नहीं दिया। बल्कि जो भी कुछ था वो भी उनसे चीन लिया ? सरत बाबू अपने घर में अकेले रह गए। अपने बचो से दूर।बच्चे कभी मिलने नहीं आए उनसे आज उनके पास खोने को कुछ नहीं हे ? गोविन्द सेठ आज भी अपने परिबार के साथ खुस हे ? और सरत बाबू किताबों के पनो में उलझी हुई उनके कुछ सवालों मेसे एक सवाल का जवाब आज भी ढूंढ़ते हुए  : - 

        बुरे के साथ अच्छा और अच्छे के साथ बुरा क्यों होता हे ?

लेखक के बिचार : -

इस पुरे कहानी में आप को गोविन्द सेठ बुरा और सरत बाबू सही लगे होंगे पर कहानी का एक दूसरा पेहलु भी हे। सरत जी ने कभी भी सचाई को परखने की कोसिस नहीं की। उन्होंने हमेसा परिस्तिथि के साथ बह चलना चाहा। अपने परिबार के प्रति अपने  जिम्मेदारिओं को पूरी तरा निभा न सके। प्रतिवा देबि एक औरत होते हुए भी परिबार के लिए परिश्रम करती रही। दुसरो के मदत करना उचित हे। पर अपने उपर आश्रित अपने परिबार को अलग करलेना ये भी उचित नहीं। परिबार का मुखिया होने का दर्जा वो खोचुके थे। तर्क का बिसाये अब ये नहीं के कौन सही या फिर कौन गलत ? पर सच ये भी हे के हम खुद हमारे परिस्थितिओं के लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार होतें हे। inspirational short stories about life

ये एक बिचार मात्र हे। कृपया comment bx में आप अपने बिचार देना मत भूलिए

कुलकत होगी अगले भाग में। inspirational short stories about life






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