emotional love story in hindi - प्यार भरी दो लब्ज़ों की हे दिल की काहानी -भाग 3 rdhindistories
अचानक बिजलियाँ कड़क उठती हे। मानो जैसे मुझे तिथि के सवालों के तीर से बचाने की कोसिश की जा रही हो। सवालों के सिलसिलें को ऐसे अधूरे हाल में छोड़के जाना पड़ता हे तिथि को। .... लैंप जलाने ताकि अँधेरा मिट सके। पर उसदिन मानो हवाएं जैसे अपने आप्पे से बहार हो चुकीथी। देखते ही देखते हवाओं ने तूफान का रूप ले लिया। इस तूफान में लैंप जलाने का कोई फ़ायदा नहीं हे, बारिश के बूंदे भी गिरने लगी मानो जैसे आज सबको जबाब चाहिए था। ऐसा लगा जैसे बारिशें आज रुकेंगी नेहीं, जब तक में कोई जवाब न दे दूँ। पर जवाब तो मुझे भी चाहिए था। ख़यालों के आगोश से बहार निकली तो देखा के आखिर कार बारिश थम गयी थी । उसे भी इस बात का एहसास होने चला था के जवाब किसी के पास नहीं। बारिशों के थमने के बाद मानो जैसे एक सनाटा पसर गया हो। इतना सनाटा की दिल की बेचैन धड़कनो की आवाज साफ सुनाई दे सके। पीछे मूड़ के देखा तो, तिथि कब की सो गईथी। बस मेरे ही आँखों में नींद नहीं थी। जिसको देखा तक नहीं उसके लिए ये सब क्यों ? फिरसे एक सवाल ? और जवाब किसी के पास नहीं।आखिर कार में भी नींद की तलाश में निकल गयी और कब नींद ने मुझे अपने आगोश में भर लिया पता नेही चला। सुभे आंखे खुलने पर तिथि को किसीसे बात करते हुए देखा दरवाजे पे खड़े होके। बारिश के वजेसे सोसाइटी कंपाउंड में कल रात एक पेड़ गिरगया हे ऐसा तिथि का कहना था। खेर जो भी हो ऑफिस जाने के लिए तयार होना था पर तिथि हे के बाते किये जारही हे। मेने तिथि को बुलाना मुनासिफ नहीं समझा। तभी अचानक तिथि ने किसीको नमस्ते किया और दरवाजा बंद करते हुए एक आवाज ने उससे फिरसे रोक लिया। मेने ये सब नजर अन्दाज करना सही समझा। तिथि वापस आयी तो थोडेसे नाराजगी भरे लेहेजे से में पूछी "हमेसा मुझे तो बड़ा ज्ञान दिया जाता हे समये का , आज आपको क्या होगाया था जरा बताएगी।
" मेरे घुसे भरी लफ्ज़ो में जो प्यार की चुटकी थी उसे भांपते हुए तिथिने बड़े ही प्यारसे जवाब दिया :- "हमारे पड़ोसी आये थे हमसे मिलने ,बस पडोसी धर्म नीभा रहीथी। " दरसल हमारे फ्लैट के पास में में ही एक फ्लैट खाली था ,तो उसीमे अपूर्वा नाम का लड़का किराये पे रहने आया था। और हमारे पडोसी होने के नाते तिथि से बातें कर रहा था।
अब चलो भी देर हो रही हे ,ये कहकर तिथि ने मुझे गले लगाया। ये जो दोस्त है ना, इन्हे हमारी कमजोरी पता होती हे। झटसे मना लेतें हैं हमे। ऑफिस में आज इतना शोर सराबा नेही था। तो तिथि के केहने पे हम लोग थोड़े सनंदर किनारे घूमने चले गए। समंदर किनारे खड़े होके ऐसा लगा जैसे कोई मुझसे केह रहा हो अपने सारे गमो को भूल के आज़ाद होजाओं। ये पराया सेहर आज मुझे अपना बनाने लगा था।
"बानी इनसे मिलो ये हे अपूर्वा। हमारे नए पडोसी। सुबह जिसकी में बाते राहा था।"
तिथि की आवाज़ को हवाएं रोक रही थी। ठीकसे सुनाई तो नहीं देरहा था क्यों के हवाओं शोर काफी तेज़ था। फिर भी मैंने तिथि के बोलने के लहजे को समझते हुए मुस्कुराके अपूर्वा को हेलो कहा। बाते सुरु करने के लिए अलफ़ाज़ों की कमी सी मेहसूस हो रहीथी। तभी अचानक तिथि अपूर्बा को कुछ दिखाने के लिए ले जाती हे। मेरा उनके साथ जाना मुझे उस वक़्त मुनासिफ नेही लगा। में बस चुप चाप हवाओं से गुफ्तुगू किए जा रही थी।
मुझे इंतजार था तो बस एक ही जवाब का।. ........
तो आप भी इंतज़ार कीजिये। मुलाकात होगी अगले भाग में
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